नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में आज स्पष्ट किया कि सरकार सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं कर सकती है। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार को आयकर रिटर्न भरने और खाता खुलवाने जैसे ‘गैर लाभ’ उद्देश्यों के लिए यूआईडीआईए द्वारा जारी इस कार्ड को मांगने से रोका नहीं जा सकता।
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने के लिए इसका (आधार) प्रयोग नहीं किया जा सकता। लेकिन उन्हें (सरकार और इसकी एजेंसियां) बैंक खाते खुलवाने जैसी गैरलाभ योजनाओं के लिए आधार मांगने से रोका नहीं जा सकता। इस पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड और न्यायमूर्ति एस के कौल भी शामिल थे।
इस बीच पीठ ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तारीख तय करने से इंकार कर दिया जिसमें आधार की संवैधानिक वैधता को नागरिकों की निजता के अधिकार सहित अन्य कारणों से चुनौती दी गयी थी। इसमें कहा गया, इसके लिए सात न्यायाधीशों की पीठ गठित की जानी है। फिलहाल यह संभव नहीं है। तीन अन्य मामले हैं जिन पर संवैधानिक पीठों द्वारा सुनवाई होनी है। हम पहले ही फैसला कर चुके हैं। यह मामला हमारे दिमाग में है। हम एक के बाद एक मामला सुनेंगे।
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार शीर्ष अदालत द्वारा पारित इन विभिन्न आदेशों का पालन नहीं कर रही है कि आधार का प्रयोग स्वैच्छिक होगा, अनिवार्य नहीं। उन्होंने सरकार के कुछ हालिया फैसलों का संदर्भ दिया जिसमें ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने तथा आयकर रिटर्न दायर करने के लिए आधार अनिवार्य बनाना शामिल है। उन्होंने कहा कि आधार कार्ड को अनिवार्य बनाकर सरकार ‘अदालत की अवमानना’ कर रही है।
उच्चतम न्यायालय ने 11 अगस्त, 2015 में कहा था कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होगा और अधिकारियों को योजना के तहत एकत्र किये गये बायोमीट्रिक आंकड़े साझा करने से मना किया था। हालांकि, 15 अक्तूबर, 2015 को उसने पुराने प्रतिबंध को वापस ले लिया और मनरेगा, सभी पेंशन योजनाओं भविष्य निधि, और राजग सरकार की महत्वकांक्षी ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं में आधार कार्ड के स्वैच्छिक प्रयोग की अनुमति दे दी।