आचार्य महाप्रज्ञ का 99वां जन्मदिवस मनाया
लाडनूं। जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के द्वितीय अनुशास्ता एवं तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ की 99वीं जयंती के अवसर पर यहां विश्वविद्यालय के सेमिनार हाॅल में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन के उद्धरण व संस्मरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि व्यक्ति में सहनशीलता का गुण आवश्यक है, क्योंकि यह सर्वमान्य तथ्य है कि जो सहता है, वही रहता है। सहन नहीं करने पर नुकसान ही होता है तथा अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये सहने की प्रवृति आवश्यक है। उन्होंने महाप्रज्ञ के विचारों को उद्धृत करते हुये कहा कि सृष्टि का सौंदर्य विविधता में है, जबकि संकीर्णता मनुष्य की सोच होती है। इसलिये सृष्टि की देन को स्वीकार करने का मतलब अस्तित्व को स्वीकार करना होता है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की मेधाशक्ति का जिक्र करते हुये कहा कि वे संस्कृत, प्राकृत व हिन्दी ही जानते थे, अंग्रेजी नहीं, लेकिन जब उन्होंने अंग्रेजी की व्यापकता को देखा तो आॅक्सफोर्ड डिक्सनरी को पूरा कंठस्थ कर लिया। इस अवसर पर उन्होंने अनुशास्ता की देन के महत्व को प्रस्तुत किया तथा बताया कि वे जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय जैन विद्या का केन्द्र बनाना चाहते थे। हमें इस चुनौती को स्वीकार करते हुये उसी दिशा में प्रयत्न करने चाहिये तथा जैन-स्काॅलर बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिये। कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, शोध निदेशक प्रो. अनिल धर व शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने आचार्य महाप्रज्ञ के अनेकांत मय जीवन, उनके द्वारा प्रदत्त प्रेक्षा ध्यान व जीवन विज्ञान, सापेक्ष अर्थशास्त्र, उदार प्रवृति और संत जीवन पर प्रकाश डाला और उनके विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में बताते हुये उन्हें आधुनिक युग का विवेकानन्द बताया। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुये आचार्य महाप्रज्ञ की 300 से अधिक पुस्तकों की रचना, एक लाख किमी से अधिक पद यात्रा, उन्हें विश्व स्तर पर दिये गये अवार्ड आदि के बारे में जानकारी दी। डा. योगेश कुमार जैन ने कार्यक्रम का संख्चालन किया