चूरू । अग्रसेन नगर स्थित राज्य स्तरीय आंगनबाड़ी प्रशिक्षण केन्द्र चूरू में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के प्रशिक्षण समारोह के मुख्य अतिथि एडवोकेट रामेश्वर प्रजापति रामसरा ने कहा कि हमें हमारी आंगनबाड़ी को राज्य के मानचित्र पर लाना है। नवाचार करना है। उन्होंने सुस्वास्थ्य व शैक्षणिक विकास विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि 14 वर्ष की बालिका के हिमोग्लोबिन को बढ़ाने के साथ ही जब बालिका 18 वर्ष की हो तो उसका एचबी 14 होना चाहिए। शादी के बाद गर्भाधारण से बच्चे के जन्म तक पूर्ण कैलोरीयुक्त भोजन का हमें ध्यान रखना है। 1 वर्ष से 5 वर्ष तक के बच्चे के खान-पान की शुद्धता तथा पूर्णता का ध्यान रखना है उसे प्रकृति से जुड़ी ग्वारफली, सांगरी, फोफलिया, काचरी आदि खानी सिखानी है। खास तौर से बाजरा खाना सिखाना है। विचारणीय बिन्दु है कि गंेहू निरोग नहीं है। मंहगा है। फिर भी घरों में काम में लेते हैं जबकि बाजरा सस्ता है फिर भी निरोग होतु हुए भी नहीं खाते हैं। यदि आज के समय में खास तौर से बालिका को स्थानीय खाद्य खाना नहीं सिखाओगे तो आने वाले समय में स्थानीय खाद्य रसोई घर से कोसों दूर चला जायेगा। उन्होंने कहा कि शुद्ध घी, दूध, छाछ, दही के लिए पशु गाय, भैंस को बरसात का पानी पिलाकर गंवार बंटा खिलाना चाहिए और बिलौवने को भी बरसाती पानी डालकर बिलोया जावे तब जाकर घी व छाछ शुद्धता का रूप लेती है। पशु को भी शुद्ध खाद्य व फलोराईड मुक्त पानी पिलाने का काम तो हम कर ही सकते हैं। इसी तरह 5 वर्ष की उम्र तक बच्चे की कैलोरी का पूरा ध्यान रख लिया जायेगा तो बच्चा सुस्वस्थ होगा और सुस्वास्थ्य ही शैक्षणिक विकास की प्रथम सीढ़ी है। उन्होंने बच्चों में एनेमिया की रोकथाम के लिए घर-घर चकुन्दर लगाने की प्रक्रिया बताई। घर में पेड़ के एक फुट चारों ओर पाल बनाकर 2-2 इंच पर चकुन्दर का बीजारोपण कर पेड़ की जड़ में पानी देकर इसको लगाया जा सकता है। चकुन्दर सब तरह के पानी में होता है। साल में चार बार इसकी पैदावार ली जा सकती है। यह खून की कमि की पूर्ति में औषधीय सब्जी है। चकुन्दर का जूस व अनार का जूस मिलाकर पिने पर 1 एचबी खून मात्र 15 दिन में बढ सकता है। इसकी बुआई अगस्त माह से मार्च तक की जा सकती है। उन्होंने किचन गार्डन की जानकारी देते हुए कहा कि हर घर में लोकी, ग्वारफली, सेमफली, सहजन, कडीपता, कंकेडू, करेला, एलोवीरा, पालक आदि स्वस्थ सब्जियां घर-घर लगानी चाहिए। उन्होंने घर खेत खेजड़ी तौरई अभियान पर देशी तोरई लगाने की सरल प्रक्रिया बताई। प्रजापति ने बताया कि इन सब्जियों में धारीदार तौरई प्रथम बार खेजड़ी के नीचे सूखे में बीज छोड़कर दूसरी बार हेरे की रेत जिस तरफ खेजड़ी के पड़े वहां पहले बीज छोड़कर इसके बाद तीसरी बार खेजड़ी के पेड़ के नीचे खपतवार व पाड़े निकालते समय बीज छिड़ककर तथा चौथी बार प्रथम बरसात के बाद दूसरी बरसात पर हाथ से बीज चुभोकर पेड़ों पर वर्षा आधारित बेलदार सब्जियां ली जा सकती है। इस अभियान में विद्यार्थी, सरकारी कर्मचारी, दुकनदार व अन्य व्यवसायी व हर व्यक्ति थोड़ा सा समय निकालकर पेड़ों में सब्जियां लगाने की भूमिका अदा कर सकता है। इस क्षेत्र मे घीया तोरई किचन गार्डन में सर्वाधिक उपज देती है। और लोकी हर घर में लगाई जा सकती है। बस इसके लिए जमीन नीचे में पोली होनी जरूरी है। एक गुणा एक के गडडे को खोदकर वापस रेत डालकर मात्र दो बीज चुभोकर इसे लगाया जा सकता है। वर्षा आगमन पर इसे उपर चढाने की व्यवस्था कर शानदार उपज ली सकती है। घीया की खास बात यह है कि सब तरह का पानी मानती है। बिना खाद के हो जाती है। चन्द्रा घीया का बीज सर्वाेतम है। इसे भेड-बकरी पशु आदि नहीं खाते हैं। उन्होंने सहभागियों से कहा कि आओ अभियान को सफल बनायें। हर खेजड़ी पर हर चुनरी लहरायें। आसमान छूते सब्जियों के भाव गिरायें। सुस्वास्थ्य की अलख जगायें। कार्यक्रम में संस्था प्रभारी प्राचार्य गुडडी देवी, अनुदेशिका अनु कंवर, लक्ष्मी भार्गव किशन वर्मा, आनन्द सिंह, उषा, जरकरण कांटीवाल, पूनम, फरिदा, पींकी, गंगाराम ने सहभागिता दी।