हज़रत मुहम्मद (स. अ. व.) : सामाजिक न्याय के सबसे बड़े रहनुमा

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विशेष : जश्न – ए – ईद – मीलादुन्नबी

प्रस्तुति : डॉ. शमशाद अली

असिस्टेंट प्रोफेसर
कॉलेज शिक्षा विभाग, राजस्थान सरकार

इस्लामी साल के तीसरे महीने को रबी उल अव्वल के नाम से जाना जाता है। इसी महीने की बारह तारीख को मक्का की मुकद्दस सर जमीन पर 570 ईस्वी में इंसानियत के सबसे बड़े रहनुमा व सामाजिक न्याय के अलम- बरदार हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश हुई थी। उनकी पैदाइश की खुशी में पूरे विश्व में ईद मीलादुन्नबी का जश्न मनाया जाता है। ईद का मतलब है खुशी और फरहत के लौट आने का मौसम, मीलाद का मतलब है पैदाइश का दिन या विलादत का वक्त और नबी का मतलब है अल्लाह तआला (ईश्वर) की तरफ से इल्हाम (ईश्वर की ओर से हृदय में आई हुई बात) की बुनियाद पर ग़ैब (अदृश्य लोक) की बातें बताने वाला। इस तरह ईद मीलादुन्नबी का मतलब हुआ नबी की पैदाइश की खुशी। नबी को पैगंबर भी कहा जाता है क्योंकि वो ख़ुदा का पैगाम लेकर आते हैं। हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुदा के आखिरी पैगंबर है। आपके वालिद (पिता) का नाम अब्दुल्ला था अर्थात अल्लाह का बंदा या ईश्वर की संतान और मां का नाम आमना था अर्थात अम्न और शांति वाली नेक बहादुर खातून।

हजरत मोहम्मद अरब के एक प्रतिष्ठित क़ुरैश खानदान में पैदा हुए थे। उनके नाम का अर्थ ही है अधिक प्रशंसा किया हुआ क्योंकि आपको ईश्वर ने पैगम्बरी से सरफराज किया था इसलिए अपने जन्म के साथ ही मो’जिज़ा (करिश्मा या चमत्कार जो पैगंबर दिखाए) दिखाना भी शुरू कर दिया था। आपकी माँ आमना फरमाती हैं कि पैदा होते ही मोहम्मद समझदार आदमी की तरह सज्दे में चले गए और रब का शुक्रिया अदा किया और सुब्हान रब्बी अल आला कहते हुए खुदा की प्रशंसा की और फिर कहा कि अल्लाहुम्मा या रब्बे हबली उम्मती। ऐ खुदा इस संसार में बसने वाले तमाम इंसानों को मेरे दामने रहमत में दे दे। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि हजरत मोहम्मद किसी एक क़ौम या मजहब के लिए रहमत बनकर नहीं आए थे बल्कि पूरी मानवता और इंसानियत के सबसे बड़े पैरोकार की हैसियत से इस संसार में कदम रखा था इसीलिए कुरान इरशाद फरमाता है कि वमा अरसलनाका इल्ला रहमतल्लिल आलमीन अर्थात पैगंबर मोहम्मद तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे। पूरे विश्व को राह ए रास्त ( सीधा रास्ता) दिखाने के लिए जमीन पर उतारे गए थे।

इसीलिए उर्दू के मशहूर शायर कुंवर महेंद्र सिंह बेदी भी कहते हैं कि…

हम किसी दीन से हो क़ायल ए किरदार तो हैं।
हम सनाखाने शहे हैदर ए कर्रार तो हैं।
नामलेवा हैं मोहम्मद के परस्तार तो हैं।
यानी मजबूर पये अहमद ए मुख्तार तो हैं।
इश्क हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं।
सिर्फ मुस्लिम का मोहम्मद पे इजारा तो नहीं ।
बेदी आगे और लिखते हैं कि..
तू तो हर दीन के हर दौर के इंसान का है।
कम कभी भी तेरी तौकीर न होने देंगे।
हम सलामत हैं तो जमाने में इंशा-अल्लाह।
तुझको एक क़ौम की जागीर न होने देंगे।

पैगंबर मोहम्मद पर कुरआन का उतारा जाना सबसे बड़ा मो’जिज़ा था। चौदह सो साल गुजर जाने के बाद भी दुनिया के नक्शे पर ऐसा कोई सहीफा या किताब नहीं आई और आए भी तो क्यों, ऐसे पवित्र ग्रंथ तो नबियों पर नाजिल होते हैं और नबियों के आने का सिलसिला न सिर्फ थम चुका है बल्कि पूरे तरीके से रुक गया है। इसका जिक्र पहले किया जा चुका है कि हजरत मोहम्मद खुदा के आखिरी पैगंबर हैं । उनका एक बड़ा मो’जिज़ा है उनको खुदा की तरफ से मे’राज (पैगंबर साहब का आकाशीय यात्रा पर बुलाया जाना और खुदा के जलवों का नजारा करवाना) पर बुलाना , इसी तरह हज़रत मोहम्मद जब अपनी मां के पास थे तो दोनों तरफ से दूध पीते थे लेकिन जब दाई हलीमा सादिया उन्हें लेकर गई तो 2 साल तक सिर्फ दाहिनी साइड से ही दूध पिया, बाईं साइड को छुआ तक नहीं। हलीमा ने कहा यह कैसा अनोखा बच्चा है, उनको क्या मालूम हजरत मोहम्मद अपने जन्म के साथ ही सामाजिक न्याय का बहुत बड़ा पैगाम दुनिया को दे रहे हैं। अगर वह बाईं तरफ से भी दूध पी लेते तो हलीमा के बेटे का हक मारा जाता जो हरगिज वह नहीं कर सकते थे, ये भी उनका एक मो’जिज़ा था। हजरत मोहम्मद सामाजिक इंसाफ के अगुआ थे। खुद यतीम पैदा हुए थे इसलिए यतीमों(अनाथों) के दर्द को बखूबी जानते थे और महसूस करते थे। बेवा औरतों की उस दौर की दुभर जिंदगी को अपनी आंखों से देखा था इसलिए अपने से 15 वर्ष बड़ी विधवा खदीजा से शादी कर दुनिया को यह संदेश दिया कि बेवा औरतों की जिंदगी को कैसे खुशी की डगर पर लाया जा सकता है। गरीबों और बेसहारा के सबसे बड़े सहारा थे हजरत मोहम्मद।

आज 16 सितंबर 2024 को एक अजीब और दिलचस्प इत्तेफ़ाक़ है कि सोमवार के दिन ही हजरत मोहम्मद की पैदाइश हुई थी और आज ईद मीलादुन्नबी के मौके पर फिर सोमवार का दिन है। आज पूरा संसार जश्न में डूबा हुआ है और छठी सदी के आखिर में 570 ईस्वी में भी यह कायनात जश्न में डूबी हुई थी। मगरिब से मशरिक और यहाँ तक कि काबे की छत पर भी परचम मीलाद की खुशी में लहरा रहा था। रबी उल अव्वल की बारह तारीख को आपकी पैदाइश के दिन ही आप 632 ई मे दुनिया से पर्दा भी फरमाया था इसलिए कुछ लोग इसे बारह वफात के नाम से भी जानते हैं। आज ईद मीलादुन्नबी का त्यौहार हमें इंसानियत और भाईचारे का बहुत बड़ा पैगाम दे रहा है। मुल्क में अम्न और शांति की लहर दोड़ाने के लिए सामाजिक इंसाफ बेहद जरूरी है। नफरत,कट्टरता और भेदभाव को जड़ से खत्म करना होगा। सांप्रदायिक सौहार्द, आपसी भाईचारा और एकता के दम पर ही हम मुल्क को ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। ईद मीलादुन्नबी ईदों की ईद है, हजरत मोहम्मद की जिंदगी का हर पहलू नसीहत व हिकमत से भरा पड़ा है। जरूरत है उनकी सीरत के हर पहलू पर गहनता से अध्ययन करने और उस पर अमल करने की।

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