बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे चूरू के साहित्यकार मणि मधुकर

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जन्मदिन: 9 सितंबर पर विशेष…..

आलेख : कुमार अजय

चूरू। हिंदी के सर्वाधिक चर्चित और विवादास्पद लेखकों में शुमार रहे मणि मधुकर एक विशिष्ट और बहुआयामी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे, जिन्होंने हिंदी व राजस्थानी में उल्लेखनीय सृजन किया तथा साहित्य की प्रमुखतः सभी विधाओं को समृद्ध किया। उनकी राजस्थानी कविता पुस्तक ‘पगफेरो’ को साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
चूरू जिले के सेऊवा (राजगढ़) गांव में 9 सितंबर 1942 को जन्मे मणि मधुकर का मूल नाम मनीराम शर्मा था। प्राथमिक तथा महाविद्यालय शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से प्रथम स्थान के साथ लेकर हिंदी में एमए की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वह पत्रकारिता करने लगे। उन्होंने कल्पना (हैदराबाद) और अकथ (जयपुर) जैसे साहित्यिक पत्रों के बाद राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की ‘रंगयोग’ एवं ललित कला अकादमी की ‘आकृति’ पत्रिकाओं का संपादन किया। साथ ही नुक्कड़ और रंगमंच पर अनेक नाटकों का मंचन किया। मणि ने दूरदर्शन के लिए छोटी फिल्में बनाईं और दिल्ली में नेशनल प्रेस इंडिया के प्रधान संपादक के रूप में भी काम किया।एक सफल नाटककार के साथ ही मणि मधुकर एक कुशल नाट्य-निर्देशक भी रहे। उन्होंने ‘दुलारी बाई’ नाटक का बेहतरीन निर्देशन किया। हिंदी के आधुनिक नाटककारों और उपन्यास लेखकों में उनका विशिष्ट स्थान है। उनके नाटकों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ। उनके नाटक ‘रस गंधर्व’, ‘बुलबुल सराय’, ‘दुलारी बाई’, ‘खेला पोलमपुर’, ‘हे बोधि वृक्ष’, ‘एक तारे की आंख’, ‘इलायची बेगम’ काफी चर्चित रहे। एकांकी संग्रह ‘सलवटों में संवाद’, रेडियो नाटक ‘बौना संसार’, ‘अजनबी’, ‘देश निकाला’, ‘जाकिया अंजुम’ भी उनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं। हिंदी नाट्य साहित्य में मणि मधुकर ने प्रयोगशील नाटककार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। मणि के नाटकों में आम आदमी के दुख-दर्द, आकांक्षा-आशंकापूर्ण जीवन के अंधकारमय वर्तमान और आशाहीन भविष्य के बुनियादी कारणों की तलाश करते हुए व्यवस्था की विसंगतियों और विडंबनाओं को न केवल उजागर ही किया गया है बल्कि उनके लिए जिम्मेदार शक्तियों के खिलाफ संगठित होकर सतत संघर्ष करने की प्रेरणा भी दी गई है।नाटक के अलावा उपन्यास, कहानी, कविता, रिपोर्ताज, बाल साहित्य सहित विभिन्न विधाओं में मणि मधुकर ने भरपूर लेखन किया। उनके उपन्यास कथ्य की दृष्टि से राजनीतिक-सामाजिक हैं। मणि द्वारा लिखे ‘सफेद मेमने’, ‘पत्तों की बिरादरी’, ‘पिंजरे में पन्ना’, ‘मेरी स्त्रियां’, ‘सरकंडे की सारंगी’ उपन्यासों को पाठकों को बेहद प्यार मिला और समीक्षकों की सराहना। अपने उपन्यासों में लेखक ने आम आदमी के पक्ष में रहकर संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य किया है। मणि मधुकर अन्य लेखकों से निराले हैं। उनकी रचनाओं में अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार, राजनीतिक स्थिति, अत्याचार आदि का यथार्थ चित्रण है। वह मानव मूल्यों और मानवता के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहे हैं। मणि के उपन्यासों में राजस्थान के भूभाग का जीवंत परिवेश पूरी समृद्धि के साथ उभरा है। उनके उपन्यासों का तथ्य बहु आयामी है। उन्होंने राजस्थान की जो स्थिति देखी और अनुभव की, उसे ही अपनी रचनात्मक प्रतिभा के बल पर अपनी रचनाओं में चित्रित करने का प्रयास किया है।मणि मधुकर की साहित्य साधना विपुल है। अपने साहित्य में उन्होंने भोगे हुए यथार्थ को अपनी कारयित्री तथा भावयित्री प्रतिभा से अभिव्यक्त किया। नाटक और उपन्यासों के अतिरिक्त उनकी प्रकाशित कृतियों में कविता संग्रह ‘खंड-खंड पाखंड पर्व’, ‘घास का घराना’, ‘बलराम के हजारों नाम’, ‘सुधि सपनों के तीर’, कहानी संग्रह ‘हवा में अकेले’, ‘भरत मुनि के बाद’, ‘त्वमेव माता’, ‘एकवचन बहुवचन’, ‘चुनिंदा चौदह’, रिपोर्ताज ‘सूखे सरोवर का भूगोल’, संस्मरण ‘उड़ती हुई नदियां’, ‘भुने हुए प्रेम का स्वाद’ आदि महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अलावा बाल उपन्यास सुपारी लाल सहित बाल साहित्य में भी उल्लेखनीय काम है। मणि मधुकर हिंदी और राजस्थानी साहित्य के बहुचर्चित हस्ताक्षर हैं। उन्होंने विभिन्न विषयों पर, विभिन्न विधाओं में निरंतर अपनी लेखनी चलाई और काफी महत्वपूर्ण रचनाएं लिखीं। उनकी सृजन क्षमता निरंतर चौंका देने वाले नए-नए आयाम उद्घाटित करती रही। उनकी कविताओं में राजनीतिक विद्रूपता और विसंगतियों का चित्रण है। मणि मधुकर की कहानियां रेगिस्तान के जनजीवन पर केंद्रित हैं और स्त्री उनकी कहानियों का केंद्र बिंदु रही है।उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार सम्मान मिले, जिनमें ‘पगफेरो’ पर मिले साहित्य अकादेमी अवॉर्ड के साथ-साथ ‘रस गंधर्व’ पर मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का सेठ गोविंद दास पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान व दक्षिण साहित्य संगम कर्नाटक से मिले पुरस्कार भी शामिल हैं। इसके अलावा ‘बुलबुल सराय’ पर महाराष्ट्र नाट्य मंडल का मामा वरेरकर पुरस्कार भी मिला।6 दिसंबर 1995 को उनका देहावसान हो गया लेकिन मणि मधुकर अपनी रचनाओं और पात्रों के रूप में हिंदी और राजस्थानी साहित्य जगत में हमेशा याद किए जाएंगे।

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