मुद्दा – नरेन्द्र शर्मा
अनवरत बढ़ती महंगाई के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों की हालत बद से बदतर होती जा रही है तो दूसरी और महंगाई को लेकर सरकार मौन क्यूं है पर आमजन आश्चर्य चकित है।एक ओर महंगाई निरंतर बढ़ रही है तो दूसरी ओर रोजगार के संसाधन घटने से बेरोजगारी बढ़ रही है फिर भी सरकार की ओर कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं यह लोगों का मानना है।कोरोना काल में मंदी की चपेट आया व्यापार अब भी उबर नहीं पाया है तो जिन युवाओं का रोजगार छिन गया था वे अब भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। गरीब व मध्यम वर्ग दो पाटों के बीच पिस रहा है। यह सरकार में प्रतिनिधित्व करनेवाले जानते भी है फिर भी कोई बोल नहीं रहा है।सब्जी से लेकर खाने की सभी वस्तुओं के भाव ताव खा रहे हैं। खाद्य पदार्थ के निरंतर बढ़ रहे भावों के कारण थाली इतनी महंगी हो गई है कि लोग पेट मोसने पर मजबूर हो रहे है। 14-15 रुपए किलो में मिलने वाला बाजरा 19 रुपए तो जौ 20-21 रुपए किलो मिल रही है। तेल का खेल तो गजब ही ढाह रहा है तो दालों में बिना चुल्हे चढ़े ही उबाल आ रहा है। किसी जमाने में गरीब का खाज कहा जानेवाला लहसुन प्याज अब राजदारों के हवाले हो गए हैं।सबसे बड़ी विडम्बनात्मक स्थिति यह है कि महंगाई बेकाबू हो रही है फिर भी सरकार मानने को ही तैयार नहीं है। यह हमारा नहीं आम आदमी कह रहा है। लोगों का कहना है जीडीपी की बात हो या महंगाई आंकड़े उनमें कही तालमेल ही नजर नहीं आ रहा है। आम आदमी कह रहा है महंगाई चरम पर पहुंच रही तो व्यापारी तक कह रहे मांग घटने के बावजूद खाद्य पदार्थों के बढ़े भावों गिरवाट नहीं बल्कि उछाल आ रहा है।
महंगाई बढ़ने की यह है अवधारणा
अर्थशास्त्रियों की माने तो कहा जाता है कि यदि लोगों के पास रुपए-पैसे ज्यादा होंगे तो वे खरीद फरोक्त ज्यादा करेंगे, अधिक वस्तुएं खरीदेंगे तो बाजार में मांग बढ़ेगी। वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और दूसरी ओर उत्पाद की आपूर्ति कम होगी। इसी कारण वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी और बाजार महंगाई की चपेट में आ जाएगा। सच तो यहीं है कि बाजार में अधिक रुपए-पैसों आने के कारण महंगाई बढ़ जाया करती है। लेकिन अब उल्टा हो रहा है क्योंकी लोगों के पास पैसा है ही नहीं।
कहा गया पैसा
कहा जाता है जब पुरानी केरैंसी प्रचलन से बाहर हो जाती है तो पैसा टूटता है। हमारे यहां नोटबंदी हुई जिससे न केवल स्थिति असमंजस की बनी बल्कि रुपए की छिजत हुई। इसके बाद स्थित सामान्य हो ही रही थी कि कोरोना आ गया और जो कुछ बचा था वह भी खा गया।
मध्यम वर्ग आया गरीबी रेखा के नीचे
आम आदमी कहता है कि कोरोना में लोगों के रोजगार छीन लिए गए। बाजार ठप हो गया। कमाई के संसाधन सिमट गए। गत वर्षों में जैसे तैसे लोगों का काम चला लेकिन जुगाड़ कब तक चले। इसलिए गरीब तो गरीबी से जूझ रहा ही था और मध्यम वर्ग भी गरीबी रेखा के नीचे आ गया।
आर्थिक विकास भी हुआ प्रभावित
माना कि महामारी, उच्च मुद्रास्फीति, वेतन कटौती, नोकरियों का जाना और बेरोजगारी बढ़ने से उपभोक्ताओं क्रय शक्ति प्रभावित हुई है। इसका आर्थिक विकास पर भी असर पड़ा है। फिर भी आम आदमी कहता है कि अर्थ व्यवस्था क्या होती हैं वे जानते हैं लेकिन अर्थ व्यवस्था चरमराने की स्थिति पर सरकार क्या कर रही है पर क्यों नहीं बोल रही है। महंगाई उसके लिए मुद्दा क्यों नहीं। लोग पूछते हैं कि स्थिति में सुधार कब आएगा को लेकर सरकार देश के समक्ष असलियत क्यों नहीं रख रही है!