प्रोफेसर सुरेंद्र डी सोनी ने रचनात्मकता और सोशल मीडिया के प्रभाव पर रखे विचार,अनुवाद की चुनौतियों और डायरी लेखन के महत्व पर हुआ विचार-विमर्श
चूरू।राजकीय लोहिया महाविद्यालय में आयोजित “संवाद-सृजन से साक्षात्कार” कार्यक्रम में प्रोफेसर डॉ सुरेंद्र डी सोनी ने अपनी कविता लिखना क्यों का उल्लेख करते हुए ‘भीतर की आग’ को रचनात्मकता की निरंतरता का स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि यह आग व्यक्ति के भीतर सृजन की ऊर्जा को प्रज्वलित रखती है। डॉ सोनी ने सोशल मीडिया के साहित्य पर प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि इसने लेखक को पाठकों तक पहुँचने का अवसर तो दिया है, लेकिन किताबों के प्रति रुचि को भी कम किया है। यही कारण है कि कविता अपने संपूर्ण प्रभाव से टिक नहीं पाती और जल्द ही विस्मृत हो जाती है। उन्होंने अनुवाद की सीमाओं और अनुवाद में विद्यार्थियों के भविष्य पर भी अपने विचार साझा किए।कार्यक्रम के दौरान, उन्होंने डायरी लेखन के महत्व को रेखांकित करते हुए विद्यार्थियों को सलाह दी कि यह अभ्यास जीवन को एक नई दिशा दे सकता है। साहित्यिक चित्रण के जरिए उन्होंने दिखाया कि जहां शब्द समाप्त हो जाते हैं, वहां चित्र अपनी कहानी बयां करते हैं।महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजू शर्मा ने बताया कि इस तरह के संवाद कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों को कला, साहित्य, संस्कृति, समाज, प्रशासन और खेल जैसे विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों से रूबरू करवाया जाएगा, जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके।कार्यक्रम में प्रोफेसर केसी सोनी ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि राजकीय लोहिया महाविद्यालय से उनका गहरा जुड़ाव है, और इस तरह के आयोजन उनके लिए गर्व की बात है।कार्यक्रम के दौरान, प्रोफेसर डॉ. सुरेंद्र डी सोनी की पुस्तक फिर तो रुतबा छिन गया का विमोचन किया गया। इस अवसर पर कमलेश शर्मा ने पीपीटी प्रदर्शन के माध्यम से डॉ. सोनी के व्यक्तित्व और साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला।आईक्यूएसी प्रभारी प्रोफेसर रविंद्र बुडानिया ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम विद्यार्थियों के कलात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कार्यक्रम के अंत में साहित्यिक समिति की सदस्य पूजा प्रजापत ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।