लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री चूरू रो रहे हैं हम भी कैसे पत्थरों के सामने….
चूरू। लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री में साहित्य गोष्ठी हुई। सचिव श्याम सुन्दर शर्मा ने बताया कि नगर श्री में हर माह के अंतिम रविवार को होने वाली पं. कुंज बिहारी शर्मा स्मृति साहित्य गोष्ठी बाबूलाल शर्मा की अध्यक्षता व जय प्रकाश शर्मा के विशिष्ट सान्निध्य में आयोजित हुई। मंगलव्यास भारती द्वारा मंगलाचरण करने व धरती कस्ती भूल सुधारो… गीत से साहित्य गोष्ठी का आगाज हुआ। गीता रावत गाफिल की कविता-ये फुटपाथ सदियों से सर्दी-गर्मी बरसात सहता है…, संदीप जांगिड़ की- कुस्ती का खेल बचपन से भायो…, पिंटू शर्मा की- मेहमान हूं चंद रोज तेरे शहर में… इमरान भाटी की गजल-कभी हारा कभी जीता मैं अपनी मुस्किलों से… कविताओं को खूब सराहा गया। बाबू खां नूर की गजल- आ अभी कुछ गुफ्तगू कर लें…, दीपक कामिल की रो रहे हैं हम भी कैसे पत्थरों के समाने…, अब्दुल मन्नान मजहर की-लाखों सलाम देश के उस जवान पर…, गजलों ने खूब समां बांधा। विजयकांत शर्मा की हास्य रस की कविता ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। रितु की कविता-पूरा इतवार निकाल देता हूं तुम्हें सोचने में… भगवती पारीक की कविता- दौड़ रही है जिन्दगी भाग रही है जिन्दगी…, अन्नतराम सोनी की गत आधी शती से न्याय ढूंढता आ रहा हूं…, डॉ. श्यामसुन्दर शर्मा के गीत- एक कयामत है जो हर रोज गुजर जाती है…., गजल आंखों मेरी पुरनम नहीं है, ये ना समझना कोई गम नहीं है… ने खूब वाह-वाही लूटी आशीष गौतम आशु हम खोटे सिक्के हैं जनबा जरूरत में ही काम आते हैं… मुकेश शर्मा- जिन्दगी यूं तो अच्छी खासी है जाने क्यूं आंख में उदासी है… प्रो. कमलसिंह कोठारी-खूद से कहीं बिछड़ गये ढूंढ रहे हर ओर… पर खूब तालियां बटोरी। विशिष्ट अतिथि जयप्रकाश शर्मा व अध्यक्ष बाबूलाल शर्मा ने साहित्य गोष्ठी की समीक्षात्मक विवेचना की। संचालन प्रो. कमलसिंह कोठारी ने किया।