अमर शहीद कुंवर प्रताप सिंह बारहठ की जयंती मनाई

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चूरू। क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ स्मृति संस्थान एवं ओबीसी वेलफेयर सोसायटी, चूरू के संयुक्त तत्वावधान में भालेरी रोड़, चूरु स्थित क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ स्मृति भवन एवं चारण छात्रावास में कुंवर प्रताप सिंह बारहठ की जयंती मनाई गई ।संस्थान के अध्यक्ष रिछपाल सिंह चारण ने बताया कुँवर प्रताप सिंह बारठ का जन्म राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा के पास देवपुरा गाव में 24 मई 1893 में हुआ था। वे क्रान्तिवीर ठा. केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। समारोह के मुख्य अतिथि प्रोफेसर दिनेश चारण ने अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ के जीवन संस्मरणों पर विचार व्यक्त करते हुए अमर शहीद प्रताप सिंह पर रचित कविता का वाचन किया। प्रोफेसर ने प्रताप सिंह के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रताप ने अपने चाचा जोरावर सिंह के साथ ही अपने शाहपुरा के विशाल प्रासाद को मार्च सन 1914 के तीसरे सप्ताह में अंतिम प्रणाम किया। 31 मार्च को केसरी सिंह के परिवार के समस्त पुरुषों पर वारंट निकले।

चाचा भतीजे ढूंढें गए पर कहीं न मिले।जाने से एक दिन पूर्व प्रताप ने अपनी माता से कहा दृ “धोती फट गयी, कहीं से तीन रुपये का प्रबंध कर दो, तो धोती ले आऊँ, आज ही चाहिए।” माता के हाथ तो रिक्त थे, इधर उधर प्रयत्न करने पर भी दो रुपये मिले जो पुत्र को दे दिए। प्रताप के लिए माता का दिया हुआ वह अंतिम पाथेय था। बिना कुछ कहे मन ही मन माता को अंतिम प्रणाम कर सायंकाल होते होते वे निकल पड़े। कोटा शहर में पिताजी के एक मित्र के पास पहुंचे, कहा “जो कुछ भी तैयार हो सो ले आओ, भोजन यहीं करूँगा।” भोजन करते समय मित्र ने कहा-“कुंवर साहब अब क्या इच्छा है ? प्रताप ने कहा शादी करना है। क्या कहते हो, शादी? आज तक स्वीकार नहीं किया और अब इस घोर विपत्ति में शादी? यह क्या सूझी है? हाँ, निश्चय शादी, लग्न भी आ गया है, उसी के लिए जाता हूँ। कहाँ, सब सुन लोगे” यह कहते हुए प्रताप ने जोर से “वंदे मातरम” का नारा लगाया और अद्रश्य हो गए। उसके बाद प्रताप को किसी ने कोटा शहर में नहीं देखा। दूसरे दिन प्रताप घर नहीं लौटे तो वही मित्र माता के पास आये और पिछले दिन की घटना बताई तो माता बोली “ठीक है, परन्तु उसने मुझसे नाहक ही छिपाया, में उसे तिलक करके विदा करती।”समारोह की अध्यक्षता करते हुए ओबीसी वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष रामेश्वर प्रजापत ने अपने संबोधन में इतिहास की महान विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेने एवं सामाजिक सहभागिता पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने अमर शहीद प्रताप सिंह के विषय में बताया कि वे रासबिहारी बोस का अनुसरण करते हुए क्रांतिकारी आन्दोलन में सम्मिलित हुए। रास सिंह बिहारी बोस का प्रताप पर बहुत विश्वास था।

२३ दिसम्बर १९१२ को लॉर्ड हर्डिंग्स पर बम फेंकने की योजना में वे भी सम्मिलित थे। उन्हें बनारस काण्ड के सन्दर्भ में गिरफ्तार किया गया और सन् १९१६ में ५ वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। बरेली के केंद्रीय कारागार में उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गयीं ताकि अपने सहयोगियों का नाम उनसे पता किया जा सके किन्तु उन्होने किसी का नाम नहीं लिया।समारोह के विशिष्ट अतिथि सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य सहदेव सिंह पालावत ने बताया कि प्रताप सिंह बारहठ की प्रारंभिक शिक्षा कोटा, अजमेर और जयपुर में हुई। क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद से प्रेरणा लेकर देश को स्वतंत्र करवाने में जुट गए।अल्पायु में पिताश्री ने बालक प्रताप को अर्जुनलाल सेठी की गोद में सौंप दिया था जिन्होंने उनको मास्टर अमीचंद के पास भेज दिया। अमीचंद ने रास बिहारी बोस से मिलकर प्रताप और उनके साथियों को रेव्योलूशनरी पार्टी में भर्ती करवा दिया और बोस के निर्देशन में बालक प्रताप एक युवा क्रांतिकारी में परिवर्तित हो गया।सेवानिवृत्त तहसीलदार राधेश्याम स्वामी ने अपने संबोधन में कहा कि रासबिहारी बोस ने अपने एक पत्र में अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ के विषय में लिखा है, “प्रताप को देखा था तो मालूम हुआ कि उसकी आँखों से आग निकल रही है। प्रतापसिंह प्रकृति से ही सिंह था।”ओबीसी वेलफेयर सोसायटी के संरक्षक गिरधारी लाल तंवर ने ऐसे कार्यक्रमों में सामाजिक सहभागिता बढ़ाने एवं सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु सकारात्मक प्रयास किये जाने पर बल दिया। सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग के डॉ अशोक शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि समाज को महान विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके बताए मार्ग पर चलना चाहिए एवं शिक्षा पर अधिकाधिक ध्यान देना चाहिए।

संस्थान के सचिव सुल्तान दान चारण ने समारोह में शामिल सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।युवा नेता प्रहलाद दान चारण ने बताया कि अमर शहीद प्रताप सिंह को बरेली जेल में चार्ल्स क्लीवलैंड ने इन्हें घोर यातनाएं दी ओर कहा – ष्तुम्हारी माँ रोती है ष् तो इस वीर ने जबाब दिया – ष् में अपनी माँ को चुप कराने के लिए हजारों माँओं को नहीं रुला सकता। ष् और किसी भी साथी का नाम नहीं बताया। जेल में ही अंग्रेजों की कठोर यातनाओं से शहीद हो गये।समारोह में नारायण दान कांगड, चंद्रमोहन सैनी, बजरंग लाल जांगिड़, श्रीपाल सिंह खुडिंया, राजेश चारण, भूपेंद्र सिंह चारण, राधाकिशन चारण, सुभाष रत्नू, जयसिंह चारण, मातूसिंह राठौड़, गणपत सिंह, देवीदान चारण, खेताराम, सतीश सक्सेना, भंवर लाल जांगिड़ ओंकारमल सैनी, धनराज बालान, रामकृष्ण प्रजापत, कमल पंवार, चन्द्र प्रकाश शर्मा, विष्णु चौहान आदि उपस्थित थे।

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