’’’राबड़ी’’’

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वैद्य बालकृष्ण गोस्वामी रतनगढ़।

धन्न धन्न आहार राबड़ी।
जीवण रो सुखसार राबड़ी।।
रॉंधण सोरी खावण सोरी।
दोराई री हार राबड़ी।।
लूण छाय मुट्ठी भर आटो।
घणो नै चावै भार राबड़ी।।
ज्वार बाजरो जौ अर मक्की।
भॉंत भॉंत सूं त्यार राबड़ी।।
कुट्यै बाजरै हाळी लूंठी।
मनभॉंती हितकार राबड़ी।।
डोवै संग दही अर कांदा।
बा सबसूं गुणकार राबड़ी।।
भोग लगावै मात सीतळा।
चढ़ी देव दरबार राबड़ी।।
रुच रुच पीवै घणा पावणा।
मुरधर री मनवार राबड़ी।।
खाटी सोरमदार सुवादु।
भातै रो आधार राबड़ी।।
माटी री हांडी रॉंध्योड़ी।
सागीड़ी रसदार राबड़ी।।
प्रीतभोज में पाटै बैठी।
लादै सदाबहार राबड़ी।।
मैनतकस रो जबर थकेलो।
झटपट मेटणहार राबड़ी।।
उन्याळै में ठंडा राखै।
लूंवा रो उपचार राबड़ी।।
पेट साफ करणै री औखद।
मेटै उदर बिकार राबड़ी।।
अटल नींद ल्याणै में समरथ।
चिंत्या रो निस्तार राबड़ी।।
खून बधावै हाड्यां पौखै।
करै डील दमदार राबड़ी।।
रूं रूं काया रो तरपावै।
इमरत रो औतार राबड़ी।।

CHURU : हृदय को रखना है स्वस्थ तो रखें इन बातों का ध्यान

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