जयपुर। राजधानी में आयोजित राजस्थानी युवा लेखक महोत्सव के समापन सत्र राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास ने कहा कि राजस्थानी भाषा, साहित्य और लोकगीत अनूठे है, अपनत्व और भाव का कोई मुकाबला नहीं है। हमें खुद राजस्थानी का अधिक से अधिक उपयोग करना होगा, तभी राजस्थानी भाषा अपने आप आगे बढ़ेगी। राजस्थानी भाषा को मान्यता की जरूरत नहीं है, हमारी अपनी भाषा बहुत महान है।उन्होने कहा कि, प्रदेश की राजधानी में इतनी बड़ी संख्या में राजस्थानी युवा लेखकों का एकत्रित होना राजस्थानी भाषा के लिए शुभ संकेत है। इनमें से कई युवा राजस्थानी शोध कार्य कर रहे हैं जो हमारी मातृभाषा के लिए अच्छे भविष्य का संदेश है। इस दौरान गोपाल कृष्ण व्यास ने राजस्थानी लोकगीत कुरजां ‘संदेशों लेती जाईजे’, भलो रे जमानो दियो तू विधाता, ओ जी म्हारा मोहन मुरली वाला रे, नैना में समंदर भरे आदि गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
मुख्यमंत्री कार्यालय में विशेष अधिकारी फारूख आफरीदी ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि, राजस्थानी हमारे स्वाभाविक भाषा है यह खुशी की बात है कि नई पीढ़ी अपनी भाषा को अपना रही है इसी बलबूते राजस्थानी भाषा आगे बढ़ेगी। आखर जैसे कार्यक्रमों से ही राजस्थानी भाषा को मजबूती मिलेगी।जवाहर कला केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक अनुराधा गोगिया ने बताया कि, इस महोत्सव में काफी अच्छे सत्र आयोजित किए गए और यह महोत्सव विविधता पूर्ण भरा रहा। महिलाओं की उत्साह एवं पूर्ण भागीदारी प्रशंसनीय है। यह भाषा संस्कारों में है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी। प्रभा खेतान फाउंडेशन राजस्थानी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए नींव के पत्थर का कार्य कर रहा है।समापन समारोह में ग्रासरूट मीडिया के फाउंडर, प्रमोद शर्मा ने कहा कि, वर्ष 2016 में औपचारिक रूप से आखर कार्यक्रम की शुरुआत हुई और अब इसने प्रदेश में बड़ी पहचान बना ली है। जून 2022 में राजस्थानी महोत्सव के नाम से एक बड़ा आयोजन करने की योजना है। राजस्थानी भाषा जल्द ही मान्यता मिलना तय है। भविष्य में संभाग स्तर पर भी राजस्थानी भाषा के शिविर आयोजित किए जाएंगे।महोत्सव के दूसरे दिन कमला कमलेश सत्र आयोजित किया गया। इसमें साहित्यकार कुंदन माली, डॉ हरिमोहन सारस्वत, विमला नागला अपने-अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन लेखिका संतोष चौधरी ने किया। इसमें सुमन पडि़हार और डॉ अनीता जैन ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया। दो दिवसीय इस महोत्सव में विभिन्न सत्र आयोजित किए गए थे जिसमें राजस्थानी भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए गहन विचार-विमर्श किया गया। राजस्थानी के इस जलसे में राजस्थान के विभिन्न जिलों से साहित्यकारों, लेखकों, कवि-कवियत्रियों, शोधार्थियों और राजस्थानी भाषा प्रेमियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।