प्रमुख विधा के रूप में उभरी है लघु कथा : डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा

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जयपुर।  प्रभा खेतान फाउंडेशन और ग्रासरूट फाउंडेशन की ओर से आज आखर पोथी का आयोजन किया गया। इसमे डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा की राजस्थानी भाषा में लिखी गई पुस्तक अटकळ का विमोचन किया गया। श्री सीमेंट के सहयोग से हुए इस कार्यक्रम में साहित्यकारों ने पुस्तक के बारे में अपने विचार प्रकट किए।
पुस्तक के लेखक डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने कहा कि, अटकळ राजस्थानी में मेरा दूसरा लघुकथा संग्रह है। इससे पहले 2006 में लघुकथा ठूंठ प्रकाशित हुआ था। लघुकथा इस दौर में प्रमुख विधा के रूप में सामने आई है। यह पाठक के ऊपर विशेष प्रभाव डालती है। मैं जब अपने आसपास घटित घटनाओं, विसंगतियों और संवेदनहीनता को अनुभव करता हूं तो लघुकथा लिखने की प्रक्रिया शुरू होती है। राजस्थानी लघुकथा में राजस्थानी शब्दों की चाशनी इनका स्वाद बढ़ाती है। लघुकथा समाज को संदेश देती है तो व्यंग्य भी करती है। लघुकथा का काम भटकते हुए लोगों को रास्ता दिखाने का है। संवेदनहीन होते समाज को संवेदनशील बनाना, मनुष्यता के मूल्यों की स्थापना लघु कथाओं का मूल स्वभाव है।
आशीष पुरोहित ने प्रस्तावना पढ़ते हुए बताया कि, इस पुस्तक में लघु कथाओं का संग्रह है। वर्तमान में लघु कथाएं लोकप्रिय विधा के रूप में उभर रही है। भागदौड़ की जिंदगी के चलते लोगों के पास समय कम है और यह कथाएं गागर में सागर भरते हुए समाज को सकारात्मक संदेश देती है। यह लघुकथाएं लोगों को आकर्षित करती है। इनकी खासियत यह है कि कुछ कथाएं तो 7-8 लाइनों में ही पूरी हो जाती है तो कई कथाएं एक पेज में है। राजस्थानी भाषा के लिए डॉ. कच्छावा का प्रयास सराहनीय है। ।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा कि, इस पुस्तक में माटी की महक और भाषा की चहक है। लेखक ने अपने कथा शिल्प और लेखन से जीवन और परिवेश का सुंदर चितराम उकेरा है। कथ्य का ताला और शिल्प शैली की की चाबी से खोलते हुए पाठकों को कथा कहने का रस और भाषा की रंगत के साथ अच्छी संगत बनाते है।
पुस्तक की समीक्षा करते हुए साहित्यकार डॉ. करूणा दशोरा ने कहा कि डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा लिखित 88 पेज की इस पुस्तक में 64 लघुकथाएं है। इसका आवरण किशन कुमार व्यास ने तैयार किया है। डॉ. कच्छावा ने इस पुस्तक को अपने गुरु भंवरसिंह सामौर और सुजानगढ़ के प्रसिद्ध समाजसेवी स्व. कन्हैयालाल डूंगरवाल को समर्पित की है। राजस्थानी के माने हुए साहित्यकार मधु आचार्य आशावादी ने अपने समय की अनूठी लघुकथाएं बताते हुए कहा है कि इसमे प्रतीकों से पूरी बात कही जाती है। साहित्य में प्रतीकों का बहुत महत्व होता है उसमे लेखक सफल रहे है। डॉ. दशोरा ने समीक्षा जारी रखते हुए बताया कि इस पुस्तक की लघुकथाओं में भाव, भाषा, संवाद, कहने का तरीका, शब्दों का अनूठा प्रयोग, विषय वस्तु सब बेहतर है। इसकी लघुकथाओं के विषय आम जनजीवन से ही लिए गए है। इसमे प्रमुख रूप से वर्तमान में लोगों का रहन सहन, उनकी सोच, खोटी नियत, रूढ़ियां, ओछी राजनीति, झूठा व्यवहार, मनुष्यता का पतन आदि है। इसमे गांव-गुवाड़ी, गली मोहल्ला, सरकारी कामकाज, पुलिस, स्कूल, व्यापार आदि के बारे में बेबाकी से खुलासा किया गया है। प्रमुख लघु कथाओं में खुराक, कानून, बीनणी, पटरी, खास बात, साख, चिन्तया, उमर, अरदास, रावण आदि है। घर की बात कथा में नारी सशक्तीकरण की अनूठी मिसाल कायम करती है तो फरक में मनुष्य और जानवर का अंतर मालूम चलता है। डॉ. कच्छावा के लेखन में समय की संवेदना और लेखन कला का अनोखा संयोग है। यही इनके सृजन की खासियत है।
ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के प्रमोद शर्मा ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्रीसीमेंट और आईटीसी राजपूताना का आभार जताते हुए कहा कि आखर पोथी का आयोजन युवा लेखकों के लेखन को पाठकों के सामने लाने के लिए किया जाता है। राजस्थानी भाषा और साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए यह आयोजन किया गया है।।

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