पालन-पोषण की शपथ लेकर पेड़ों को बना रहे हैं परिवार का सदस्य

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पारिवारिक वानिकी की दिशा में तारानगर क्षेत्र में अनूठा नवाचार, लगेंगे डेढ़ लाख से अधिक पेड़, पौधरोपण में पुरुषों से अग्रणी दिख रही हैं महिलाएं, मटका पद्धति से न्यूनतम पानी में पाल रहे पौधे

चूरू। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद यूं तो मरूभूमि का पेड़-पौधों के लिए प्रेम हमेशा ही अनुकरणीय रहा है लेकिन चूरू के तारानगर ने इन दिनों एक अनूठी शुरुआत कर पेड़ों को शपथ लेकर परिवार कर सदस्य मानना शुरू कर दिया है। तारानगर ब्लाॅक के कई गांवों में पारिवारिक वानिकी अंतर्गत यह नवाचार हो रहा है और देखने वाली बात यह है कि पुरुषों की बजाय महिलाओं में पौधरोपण को लेकर ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है। मुहिम को सरकारी योजनाओं का भी खूब साथ मिल रहा है और महानरेगा में प्रत्येक ग्राम पंचायत में पौधे लगाये जा रहे हैं।इस पौधरोपण में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग सूत्राधार का काम कर रहा है। तारानगर विकास अधिकारी संत कुमार मीणा बताते हैं कि महानरेगा में एक लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है, जिसमें पहले चरण में 66 काम मंजूर किए गए हैं। प्रत्येक कार्य में 500 पौधे लगाए जाएंगे, इस प्रकार कुल 33 हजार पौधे लगेंगे। इसके साथ ही 44 गांवों में रोड के किनारे पौधरोपण के काम स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें कुल 1760 पौधे लगाए जाएंगे। पारिवारिक वानिकी कार्यक्रम के तहत महानरेगा एवं वन विभाग की नर्सरियों में 30 हजार पौधे तैयार किए गए हैं जो आमजन को निःशुल्क वितरित किए जाएंगे। विधायक नरेंद्र बुडानिया इस पौधरोपण की इस मुहिम से सक्रिय ढंग से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि क्षेत्र में महानरेगा अंतर्गत शानदार पेड़ लगाए जा रहे हैं और पौधरोपण में मटका तकनीक के प्रयोग की स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सराहना की है। बुडानिया कहते हैं कि जल संरक्षण से जुड़ी मटका पद्धति का यह नवाचार जल की कमी से जूझते पूरे राजस्थान के लिए एक माॅडल बन सकता है।

तैयार हो रहे सहजन के एक लाख पौधे

बीडीओ संत कुमार मीणा के मुताबिक, ब्लाॅक में वितरण के लिए सहजन के एक लाख पौधे तैयार किए जा रहे हैं। प्रत्येक घर में दो पौधे सहजन के वितरित किए जाएंगे। गौरतलब है कि सहजन की फली एंटी आॅक्सीडेंट, आयरन एवं प्रोटीन से भरपूर होती है तथा सोयाबीन व पनीर से भी अधिक पौष्टिक होती है। इसके अलावा 28 स्कूलों में हर्बल गार्डन बनाए जाएंगे, प्रत्येक हर्बल गार्डन में औषधीय महत्त्व के 200 पौधे लगेंगे। मीणा बताते हैं कि सार्वजनिक स्थलों एवं घरों, दोनों ही जगह पौधरोपण पर बल दिया जा रहा है। ऐसे सार्वजनिक स्थानों का चयन किया गया है, जिनमें चारदीवारी हो तथा पानी की भी पर्याप्त व्यवस्था हो।

प्रत्येक ग्राम पंचायत पर जुटीं सौ-सौ महिलाएं

मीणा बताते हैं कि विधायक नरेंद्र बुडानिया एवं प्रधान संजय कस्वां सहित जनप्रतिनिधियों तथा जिला कलक्टर साँवर मल वर्मा, सीईओ सत्तार खान, एसीईओ डाॅ नरेंद्र चौधरी सहित अधिकारियों के सकारात्मक रवैये एवं सहयोग के चलते गांवों में बड़े पैमाने पर पौधरोपण कार्य संभव हो रहे हैं। आमजन का पूरा सहयोग मिल रहा है तथा पौधरोपण के साथ-साथ लोगों की जागरुकता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि लोग जागरुक होकर पौधे की देखभाल करें। इसी सिलसिले में विश्व मरूस्थलीकरण रोकथाम दिवस पर 17 जून को प्रत्येक ग्राम पंचायत पर सौ-सौ महिलाएं जुटीं और करीब 5100 पौधे एक साथ लगाए। पौधरोपण के साथ ही महिलाओं ने पौधों को परिवार का हरित सदस्य बनाकर उसकी देखभाल की शपथ ली। भूमि संरक्षण के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पुरस्कार लेंड फोर लाइफ के विजेता प्रो. श्याम सुन्दर ज्याणी के मार्गदर्शन में यह पौधरोपण किया गया। सभी 33 पंचायतों में पौधरोपण के लिए 17 अधिकारियों को दो-दो पंचायतों पर प्रभारी लगाया गया। पंचायतों में सरपंच व ग्राम विकास अधिकारी, कनिष्ठ सहायक, रोजगार सहायक, पंचायत सहायक व राजीविका की महिलाओं ने भागीदारी निभाई। मीणा बताते हैं कि महिलाओं को इस कार्य में अग्रणी बनाने में एसडीएम मोनिका जाखड़ की विशेष भूमिका रही। जाखड़ ने महिलाओं एवं प्रभावी समूहों से संवाद कर इस दिशा में काफी प्रयास किए। पौधरोपण की तकनीक और दूरी पर विशेष ध्यान दिया गया। सभी पौधे 15-15 फीट दूरी से लगाए गए। पौधों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी ग्रामीण महिलाओं व सरपंचों ने ली है।

जल संरक्षण की मटका विधि हो रही लोकप्रिय

पौधरोपण की इस मुहिम के बीच कम से कम पानी में पौधे के सर्वाइवल के लिए प्राचीन मटका पद्धति भी लोकप्रिय हो रही हैं। अनेक पंचायतों में मटका विधि से पौधरोपण कार्य किया जा रहा है। बीडीओ मीणा के मुताबिक, मटका विधि में पौधे से कुछ ही दूरी पर मिट्टी के मटके के तली में एक छोटा छिद्र करके जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता है। मटके के छिद्र में जूट की रस्सी बांधी जाती है। पौधा लगाने के बाद मटके के निचले हिस्से को भी पौधे जड़ की तरह ही मिट्टी से ढक दिया जाता है जबकि मटके का मुंह खुला ही रहता है। इसमें जब पौधे में पानी डालने की आवश्यकता होती है तब सीधे पौधे में पानी न डाल कर मटके में डाला जाता है। मटके में लगी जूट की रस्सी के जरिए पौधे की जड़ में बूंद-बूंद करके पानी जाता है, जिससे पानी की बचत भी होती है और पौधे लंबे समय तक जीवित रहते हैं। एक बार मटके में पानी भरने के बाद 5 दिन तक पानी डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में या जहां कहीं भी पानी की कमी रहती है, वहां मटका विधि द्वारा कम पानी में भी पौधा तैयार हो जाता है। बीडीओ मीणा ने बताया कि फलदार व छायादार पौधे कम कम पानी में तैयार करने के लिए सभी सरपंचों प्रेरित कर मटका पद्धति से पौधेरोपण करवाया जा रहा है। विधायक नरेंद्र बुडानिया के 66 वें जन्मदिन पर भालेरी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मटका पद्धति से 66 पौधे लगाए गए। साथ ही इस अवसर पर हुए रक्तदान शिविर में रक्तदाताओं को पेड़ देकर सम्मानित किया गया।

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