अद्भुत प्रतिभा वाले गीतकार थे चूरू के पं. भरत व्यास
प्रस्तुति : कुमार अजय
एक से बढ़कर एक भड़कीले, फूहड़ और कनफोड़ू गानों के इस दौर में सुमधुर-सार्थक गीतों के रसिकों को हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार भरत व्यास की याद आना स्वाभाविक ही है। उनकी कलम से रचा गया एक-एक गीत हमारे सिने-जगत और साहित्य जगत दोनों के लिए समान रूप से अनमोल धरोहर है। अद्भुत प्रतिभा के धनी पं. भरत व्यास ने फिल्मों के लिए जो भी लिखा, वह उच्च कोटि का साहित्य है और उन्हें अपनी इस विशेषता के लिए युगों-युगों तक कृतज्ञता के साथ याद किया जाता रहेगा।
चूरू के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में विक्रम संवत 1974 में मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी को जन्मे भरत व्यास जब दो वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया और इस तरह कठिनाइयों ने जीवन के आरंभ में ही उनके लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर दी। भरत जी बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे और उनके भीतर का कवि छोटी आयु से ही प्रकट होने लगा था। भरतजी ने पहले दर्जे से लेकर हाई स्कूल तक की शिक्षा चूरू में ही प्राप्त की और चूरू के लक्ष्मीनारायण बागला हाईस्कूल से हाई स्कूल परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने आगे की पढाई के लिए बीकानेर के डूंगर कॉलेज में प्रवेश लिया। स्कूल समय में ही वे तुकबंदी करने लगे थे और फिल्मी गीतों की पैरोडी में भी उन्होंने दक्षता हासिल कर ली। मजबूत कद-काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबाल टीम के कप्तान भी रहे।
बीकानेर से कॉमर्स विषय में इंटर करने के बाद नौकरी की तलाश में कलकत्ता पहंचे लेकिन उनके भाग्य में शायद कुछ और ही लिखा था। इस दौरान उन्होंने रंगमंच अभिनय में भी हाथ आजमाया और अच्छे अभिनेता बन गए। अभिनेता-गीतकार भरत व्यास ने शायद यह तय कर लिया था कि आखिर एक दिन वे अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाकर रहेंगे। चूरू में वे लगातार रंगमंच पर सक्रिय थे और एक अच्छे रंगकर्मी के रूप में उनकी पहचान भी बनी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पहली कामयाबी उन्हें तब मिली, जब कलकत्ता के प्राचीन अल्फ्रेड थिएटर से उनका नाटक ‘रंगीला मारवाड़’ प्रदर्शित हुआ। इस सफलता से भरत जी को काफी प्रसिद्धि मिली और यहीं से उनके कामयाब जीवन की शुरुआत हुई। इस नाटक के बाद उन्होंने ‘रामू चनणा’ एवं ‘ढोला मरवण’ के भी जोरदार शो किए। ये नाटक स्वयं भरतजी ने ही लिखे थे। कलकत्ता में ही प्रदशित नाटक ‘मोरध्वज’ में भरत जी ने मोरध्वज की शानदार भूमिका निभाई। दूसरे विश्वयुद्ध के समय भरत व्यास कलकत्ता से लौटे और कुछ समय बीकानेर में रहे। बाद में एक दोस्त के जरिए वे अपनी किस्मत चमकाने सपनों की नगरिया मुंबई पहुंच गए, जहां उन्हें अपने गीतों के जरिए इतिहास बनाना था।
फिल्म निर्देशक और अनुज बी एम व्यास ने भरतजी को फिल्मी दुनिया में ब्रेक दिया। फिल्म ‘दुहाई’ के लिए उन्होंने भरतजी का पहला गीत खरीदा और दस रुपए बतौर पारिश्रमिक दिए। भरत जी ने इस अवसर का खूब फायदा उठाया और एक से बढकर एक गीत लिखते गए। सफलता उनके कदम चूमती गई और वे फिल्मी दुनिया के ख्यातनाम गीतकार बन गए। ‘आधा है चंद्रमा, रात आधी..’ ‘जरा सामने तो आओ छलिये’, ‘ऎ मालिक तेरे बंद हम’, ‘जा तोसे नहीं बोलूं, घूंघट नहीं खोलूं’, ‘चाहे पास हो चाहे दूर हो’, ‘तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां’, ‘जोत से जोत जलाते चलो’, ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ जैसे भरतजी की कलम से निकले जाने कितने ही गीत है जो आज बरसों बीत जाने के बाद भी उतने ही ताजा हैं और सुनने वाले को तरोताजा कर देते हैं।
भरत जी ने जब फिल्मी गीत लिखना शुरू किया, उस दौर में गीतों में उर्दू का असर ज्यादा था। ऎसे में भरत जी ने अपने समकालीन गीतकारों को साथ लेकर फिल्मी गीतों में हिंदी के प्रयोग का आंदोलन खड़ा कर दिया। भरत जी के गीतों की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि उन्होंने फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से कम ही गीत लिखे। बहुत सारी रचनाएं उन्होंने स्वतंत्र रूप से लिखीं, जो बाद में फिल्मों में शामिल होती गईं। उन्होंने फूहड़ता और अश्लीलता का कभी साथ नहीं दिया और यथासंभव इसका विरोध ही किया। हिंदी गीतों के अलावा उन्होंने राजस्थानी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे। ‘थांनै काजळियो बणाल्यूं-नैणां में रमाल्यूं …’ जैसे उनके गीतों से राजस्थानी सिनेमा को एक नया आयाम मिला। उन्होंने करीब सवा सौ फिल्मों में गीत लिखे और हमेशा एक लोकप्रिय व सफल गीतकार के रूप में वे इंडस्ट्री में जाने गए।
भरत व्यास ने अपने गीतों में मानवीय संवेदना, विरह-वेदना, संयोग-वियोग, भक्ति व दर्शन का ही समावेश ही नहीं किया, बल्कि उनके गीतों में सुरम्यता और भाषा शैली का भी जोरदार समावेश था। उनकी प्रसिद्धि की वजह से बडे-बडे निर्माताओं की फिल्मों में गीत लिखने का अवसर उन्हें मिला। भरत व्यास के लिखे अधिकांश गीतों को मुकेश व लता मंगेशकर की आवाज का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक समय तो वी. शांताराम का निर्माण- निर्देशन और पंडित भरत व्यास के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गए थे एवं सफलता की गारंटी भी। वैसे भरत व्यास ने लक्ष्मीकांत – प्यारेलाल, कल्याण जी – आनन्द जी, बसंत देसाई, आर डी बर्मान, सी. रामचन्द्र जैसे दिग्गज संगीतकारों के लिए भी गीत रचना की, लेकिन उनकी जबर्दस्त हिट जोड़ी एस एन त्रिपाठी साहब से बनी। बहुआयामी प्रतिभा के धनी भरत व्यास ने न केवल अपने गीतों में देशभक्ति, राष्ट्रीय एकता और बलिदान का संदेश दिया, बल्कि प्रेम से परिपूरित भावनाओं के भी गीत भी लिखे। ’नवरंग‘, ’सारंगा‘, ’गूूंज उठी शहनाई‘, ’रानी रूपमती‘, ’बेदर्द जमाना क्या जाने‘, ’प्यार की प्यास‘, ’स्त्री‘, ’परिणीता‘ आदि ऎसी कई प्रसिद्ध फिल्में हैं, जिनमें उनकी कलम ने प्रेम भावनाओं से ओत-प्रोत गीत लिखे। 4 जुलाई 1982 को हमसे जुदा हुए भरत व्यास आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके लिखे गीत आज भी चारों ओर गूँज रहे हैं। उनके गीतों के रस में डूबने को उतावला मन रानी रूपमती फिल्म के लिए भरत व्यास के लिखे इस गीत की तर्ज पर बस यही गुनगुनाता है- ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं…।’