मन पखेरू उड़ चला आसमान को नापने…

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नगरश्री चूरू में पं. कुंज विहारी शर्मा स्मृति साहित्य गोष्ठी का आयोजन

चूरू। लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री चूरू में रविवार को पं. कुंज विहारी शर्मा स्मृति साहित्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। सचिव ने बताया कि सृजन से साक्षात्कार कार्यक्रम प्रो. डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी की अध्यक्षता व शाइर मो. इदरीस खत्री ‘राज’ के विशिष्ट सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। आज का कार्यक्रम दिल्ली की साहित्यकार सुनीता ‘शानू’ पर केन्द्रित था। कवयित्री सुनीता ‘शानू’ ने अपने आत्मकथ्य के पश्चात उन्होंने अपनी कविताआें प्रस्तुतियां दी।

उन्होंने अपने पिता पर लिखी कविता जब सुनाई तो न केवल वह स्वयं भावुक हुई बल्कि सदन के श्रोताओं को भी भावुक कर दिया। कविता आज कई साल के बाद खत लिखने बैठी हूं…., तेरा मेरा रिस्ता एक अबूझ पहेली का रिश्ता…, एक डोर से बंधी मैं…पंतग बन गई हूं…, सपनां की दुनिया में उड़ती रही.., खबर दुनिया बदलने की कहीं तो सुनी होगी…, कहकहों के बीच सीसकने की आवाज सुनी होगी…, पंछी तुम कैसे गाते हो… पर श्रोताओं ने खूब दाद दी। अपनी मां को सम्बोधित करते हुए रचना-सुनो मां तुम भूली नहीं जा सकती…, ने खूब प्रभावित किया। चकाचौंध शीर्षक की कविता-मजदूरिन करती मजदूर के बराबर काम…, अनंत तक समानान्तर रेखाएं चाह नहीं तुमसे जीतने की…, व मन पखेरू उड़ चला है आसमान को नापने सुनाई श्रोताआें ने खूब वाह-वाही दी। कहानियां के अन्तर्गत आधुनिक के आड़ में, व्यंग्य रचनाआें में आलू प्याज की कैबिनेट मीटिंग, चिŸा भी इनकी, पट भी इनकी को खूब सराहा गया। अंत में एक गीत-धरती पर फैली सरसों की धूप सी…धरती बन आई सतरंगी रूप सी… सुनाकर खूब समां बांधा।

चर्चा सत्र में रामसिंह बीका ने अपने उद्गार व्यक्त किये। विशिष्ट अतिथि मो. इदरीस ‘राज’ ने शानू की कविताआें पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी की। डॉ. सुरेन्द्र डी. सोनी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सुनीता शानू के रचना संसार पर सारगर्भित उद्बोधन दिया। कार्यक्रम के अंत में नगर श्री परिवार की ओर से साहित्यकार सुनीता शानू को शॉल ओढ़ाकर व प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। संचालन प्रो. कमलसिंह कोठारी ने किया।

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