द्वारका, गुजरात। कर्म सन्यास एवं कर्मयोग दोनों ही कल्याणकारी है, श्रुति, स्मृति के अनुसार संन्यास श्रेष्ठ है जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग कोे श्रेष्ठ कहा है। उक्त उदगार श्रीशारदापीठ में चल रहे चातुर्मास्य—व्रत अनुष्ठाान के पावन अवसर पर श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ के चतुर्थ दिवस पूज्य महाराश्री ने उपस्थिति जनसमूह के मध्य व्यक्त किये।
पूज्य महाराजश्री ने बताया कि कर्मयोग के द्वारा षट्सम्पत्ति सम्पन्न होने पर ही सन्यास धारण करना हितकर है। अपना घर छोड़कर अगर परमात्मा का घर मिले तो ठीक नही अर्थात अपना घर छोकर घर—घर भटकना उचित नही है। गृहस्थाश्रम एक किले के समान है जंहा संबन्धियों, पड़ोसियों, मित्रों के आपस के व्यवहार से मन को संयम में रखा जा सकता है। संन्यास धारण करने के बाद एकाकी जीवन व्यतीत करते हुए यह सब जानना अत्यन्त कठिन है।
पूज्य महाराजश्री ने दृष्टान्त द्वारा समझाते हुए कहा कि किसी गांव में एक साधु मौन रहकर घोर तपस्या में लीन थे। लोगों ने उनसे उपदेश प्राप्त करने के उद्देश्य से उनका उपवास समाप्त करवाना चाहा। सभी ग्रामवासीयों ने महात्माजी से मिलकर मौन व्रत समाप्त करने का अनुरोध किया। महात्माजी ने मौन व्रत समाप्त करने के लिए यज्ञ करने का निर्देश दिया। ग्रामवासी ने मिलकर बडे उत्साह के साथ यज्ञ का अनुष्ठान किया, साधु महाराज ने अपना मौनव्रत समाप्त किया। मौनव्रत समाप्त होते ही साधु महाराज ने अपने कर्कश आवाज में सभी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग शुरू किया। सभी ग्रामवासी उनसे त्रस्त हो गए। सब लोगों ने मिलकर साधु महाराज से मौनव्रत धारण करने के लिए पुन: यज्ञ का अनुष्ठान करवाया। तात्पर्य यह है कि क्रमश: बह्मचर्य,ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम ग्रहण करना चाहिए। जिससे हम अपने काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मत्सर पर सरलता से विजय प्राप्त कर सकते है। बह्मनिष्ठ संन्यासी के चरणों में साढ़े तीन करोड़ तीर्थ विराजमान होते है। पूज्य महाराजश्री ने बताया कि जिस प्रकार बुखार आने पर भोजन का स्वाद समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार पूर्व जन्मों के दोषों के कारण भगवान के गुणों के श्रवण में मन नही लगता है। भगवान का कीर्तन, सेवा और भागवत कथा के श्रवण से भगवत्भाव की उत्पत्ति होती है।
ज्ञातव्य है कि 13 जुलाई से श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ पूज्य महाराजश्री के सानिध्य में स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज व्यासासन पर विराजमान होकर प्रतिदिन सुबह साढे आठ बजे से साढे 12 बजे तक और शाम सात बजे से कथामृत का पान करने हेतु आप सादर आमन्त्रित है।
चतुष्पीठ में दो पीठों पर विराजमान पूज्य शंकराचार्य जी महाराजश्री का चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान द्वारका में चल रहा है। पूज्य महाराजश्री के दर्शन, पूजन एवं अमृतोपदेश का पान कर आप सपरिवार अपने इहकामुष्मिक अभ्युत्थान का मार्ग प्रशस्त करने की अपील जगद्गुरू शंकराचार्य स्वागत समारे समिति ने की है।